Mangal Dosh Kaise Kare Hamesha Ke Liye Khatam
Astrokiduniya आज आपके लिये लाया है मंगल दोश् और् मंगल ग्रह क्या है आज हम इसके बारे में बताएंगे
मंगल बड़ा दयालु, खतरनाक, हिंसक स्वभाव वाला, अस्थि में बल वाला, लाल रंगत वाला, चतुर, शूर, पित्त प्रकृति का, तामसी भयंकर पीली आंखों वाला, जवान, बहुत ज्यादा घमंड करने वाला और अग्नि के समान कांति वाला होता है
मंगल मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है मंगल दोश या अशुभ मंगल अपने लिए केतु है। जो बलि का बकरा बनाता है ग्रहों की बनावट के अनुसार अशुभ मंगल के बनावटी अंश सूर्य और शनि हैं।
जब अशुभ मंगल खराब होकर बुरे असर करेगा, तो अपनी कुर्बानी के लिए वह बेटे पर असर डाल देगा।
इसका कारण यह है कि मंगल के बनावटी अंश सूर्य और शनि आपस में बाप-बेटे हैं। इसका प्रभाव शनि पर ज्यादा पड़ेगा जो बेटे का कारक है।
दूसरे ग्रहों के अलावा मंगल में एक बहुत ही खास बात भी है।
अपना अच्छा असर दिखाते-दिखाते जब कभी यह बुरा असर करता है
तो उसकी चाल में एकाएक बहुत तेजी आ जाती है। फिर तेज चाल से यह बुरा असर डालना शुरू कर देता है।
जब तक मंगल दोश या मंगल के मंदे असर को रोकने के लिए कोई उपाय किया जाए
तब तक यह इतना भारी नुकसान कर देगा, जिसकी भरपाई करने में बहुत ज्यादा वक्त गुजर जाएगा।
कई बार तो मंगल के बुरे असर को रोकना ही नामुमकिन हो जाता है।
मंगल दोश् और् मंगल के मंदे असर को चंद्र की मदद से दूर किया जा सकता है या रोका जा सकता है।
बृहस्पति सूर्य और चंद्र मंगल के मित्र ग्रह है। बुध और केतु की इसके शत्रुओं में होती है।
मंगल दोश् और् मंगलीक परिणाम
मंगल दोश या मंगलीक का लक्षण देखते ही लोगों में प्रायः भय की धारणा व्याप्त हो जाती है।
लम्बे समय तक प्रतीक्षा के बाद भी विवाह नहीं हो पाता। किन्तु मंगल होने के शुभ परिणाम भी दिए हैं।
शास्त्र मर्यादानुसार, विवाह संस्कार को अति उत्तम एवं पवित्र माना गया है। इस पर ही स्त्री-पुरुष का दाम्पत्य जीवन निर्भर करता है।
इसलिए ऐसे पवित्र संबंध बनाने से पूर्व वर-कन्या के शुभाशुभ गुणों और मंगलीक अमंगलीक ग्रहों पर भली-भांति विचार कर लेना चाहिए, ताकि वे सुख एवं आनन्दपूर्वक गृहस्थ आश्रम व्यतीत कर सके।
यदि जन्मकुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8, 12 घर में स्थित हो तो उस जातक को मंगलीक कहा जाता है।
इस प्रकार साधारणत 45 प्रतिशत व्यक्ति मंगलीक होते हैं।
वैसे मंगलीक होना कोई विचित्र संयोग नहीं है, परन्तु अज्ञानी पंडितों और यजमानों के कारण लोग मंगलीक लक्षण देखते ही भ्रम एवं भय से त्रस्त हो जाते हैं।
मंगल दोश की विभिन्न स्थितियां
कुछ विद्वान मंगल के स्थान पर किसी भी पापी ग्रह के होने पर ‘कुज’ दोष मानते हैं कुज का अर्थ है पाप से उत्पन्न पापी लेकिन किसी कुंडली में मंगल दोष को देखकर यह नहीं समझ लेना चाहिए कि जातक के जीवन में इस दोष के कारण ही कुछ अनहोनी घटना घटेगी। इसकी विभिन्न स्थितियां इस प्रकार हैं
जहां मंगल की ग्रह-दशा विवाह से पहले ही भोग ली गई हो या मंगल तुल्य कुज ग्रह की दशा गुजर चुकी हो, वहां यह दोष योग लगता है।
यदि मंगल पर शुभ ग्रह या बुध की दृष्टि हो अथवा मंगल शुभ ग्रह बुध या बृहस्पति के साथ हो तो यह दोष लगता है।
यदि मंगल स्वक्षेत्रीय अथवा उच्च या नीच का हो तो यह दोष लगता है।
यदि मंगल सिंह राशि में स्थित हो तो भी यह दोष लगता है।
यदि मंगल शुभ ग्रह शुक्र, बृहस्पति या बुध के साथ स्थित हो तो यह दोष लगता है।
तात्पर्य यह है कि यदि 1, 4, 7, 8 और 12 घर में मंगल हो तो पति पत्नी का नाश करता है या पत्नी पति का नाश करती है।
अगर मंगल पहले घर में हो तो वह शारीरिक गठन, रंग-रूप, शारीरिक क्षमता तथा स्वास्थ्य का द्योतक होगा।
ऐसे जातक को मंगल के दुष्प्रभाव से निर्बल स्वास्थ्य, चिड़चिड़ापन, उग्र या हठी स्वभाव की स्थिति भोगनी पड़ती है।
यदि सातवें तथा आठवें घर का पूर्ण (10 से 20 डिग्री) मंगल हो तो लड़की की मृत्यु तक हो जाती है।
लग्न और चौथे घर से लड़की बीमार रहती है या उसकी संतान नहीं होती अथवा गर्भाशय का बहुत बड़ा ऑपरेशन होता है।
सातवें घर के मंगल से लड़की को गुप्तेन्द्रिय रोग रहते हैं।
यदि इन्हीं स्थानों, जहां मंगलीक माना जाता है, में से किसी एक में शनि स्थित हो तो ‘मंगलीक योग’ कहा जाता है।
कुछ विद्वानों के अनुसार, मंगल का योग राहू एवं शनि भी काट देते हैं। परन्तु अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि भले ही शनि एवं राहु मंगल के योग को काट दें, परंतु वैवाहिक बाधाएं फिर भी बनी रहती हैं।
ऐसी स्थिति में विवाह में बड़ी रुकावट होती है। विवाह देर से भी हो सकता है।
सगाई होकर टूट जाती है और कई बार तलाक होते भी देखे गए हैं अथवा पति-पत्नी जिन्दगी भर एक-दूसरे से असंतुष्ट रहते हैं।
दोष या क्लेश तब होता है जब कुंडली में शनि, मंगल या राहु जैसे पाप ग्रह प्रतिकूल भाव में होते हैं।
इस तरह की घटनाएं व्यक्ति के जीवन में कई जटिलताएं, चुनौतियां और नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
मंगल दोष कुंडली में ऐसी ही एक प्रतिकूल ग्रह स्थिति है। भोम दोष, कूज दोष या अंगारखा दोष के रूप में भी जाना जाता है, मंगल दोष तब होता है जब किसी व्यक्ति की कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें घर में मंगल ग्रह या मंगल पाया जाता है।
ऊपर वर्णित योग से जन्म लेने वाले व्यक्ति को मांगलिक व्यक्ति कहा जाता है।
चूंकि मंगल को युद्ध का ग्रह माना जाता है, मंगल दोषविवाह के लिए अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्माण करता है।
ऐसे व्यक्तियों के दाम्पत्य जीवन में तनाव, बेचैनी, नाखुशी और अलगाव की प्रबल संभावना रहती है।
ऐसे अधिकांश लोग पारिवारिक जीवन में असामंजस्य का अनुभव करते हैं।
मांगलिक (मंगल) दोष प्रभाव 1 घर में मंगल किसी दिए गए विवाह में जीवनसाथी को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
दोनों भागीदारों के बीच संघर्ष होगा, जिसके कारण अधिकांश परिवारों में अक्सर शारीरिक हमला और हिंसा होती है।
दूसरे भाव में मंगल व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में बहुत परेशानी लाता है। व्यक्ति के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन दोनों में गंभीर गड़बड़ी आती है।
चतुर्थ भाव में मंगल पेशेवर जीवन में प्रतिकूल परिणाम देता है। अक्सर व्यक्ति नौकरी के बीच शिफ्ट करना पड़ेगा। अंतिम परिणाम संतोषजनक नहीं होगा ।
व्यक्ति को वित्तीय समस्याओं का भी अनुभव होगा । सप्तम भाव में स्थित मंगल व्यक्ति को अत्यधिक चिड़चिड़े. वित्तीय समस्याओं का भी अनुभव होगा। सप्तम भाव में स्थित मंगल व्यक्ति को अत्यधिक चिड़चिड़े और क्रोधी बनाता है।
उसकी उच्च ऊर्जा के परिणामस्वरूप आक्रामक व्यवहार होगा। परिवार में और जीवन साथी के बीच बहुत झगड़े होते हैं।
आठवें भाव में मंगल का मतलब है कि व्यक्ति बहुत आलसी होगा। वह वित्त और संपत्ति को संभालने के संबंध में लापरवाह और लापरवाह होगा और ज्यादातर मामलों में माता-पिता की संपत्ति को खो देगा।
बारहवें घर में मंगल यह दर्शाता है कि व्यक्तियों के हॉल में बहुत सारे दुश्मन हैं।
व्यक्ति में कई तरह की मानसिक समस्याएं होंगी। जातक को काफी आर्थिक नुकसान पड़ सकता है।
मांगलिक (मंगल) दोष उपचार प्रत्येक नए महीने के पहले मंगलवार को वैक्सिंग चरण (शुक्ल पक्ष ) के दौरान उपवास रखें। उपवास के दौरान, आप केवल तुअर दाल खा सकते हैं अन्यथा इसे विभाजित कबूतर दाल के रूप में जाना जाता है।
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