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Janiye shri lalita sahastrarchan ki vidihi

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श्रीललिता सहस्त्रार्चन की अत्यन्त सूक्ष्म विधि 
              
चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चके्र पंचाभिः।
नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥
श्रीयंत्र का उल्लेख तंत्रराज, ललिता सहस्रनाम, कामकलाविलास , त्रिपुरोपनिषद आदि विभिन्न प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। महापुराणों में श्री यंत्र को देवी महालक्ष्मी का प्रतीक कहा गया है । इन्हीं पुराणों में वर्णित भगवती महात्रिपुरसुन्दरी स्वयं कहती हैं- ‘श्री यंत्र मेरा प्राण, मेरी शक्ति, मेरी आत्मा तथा मेरा स्वरूप है। श्री यंत्र के प्रभाव से ही मैं पृथ्वी लोक पर वास करती हूं।’’

श्री यंत्र में २८१६ देवी देवताओं की सामूहिक अदृश्य शक्ति विद्यमान रहती है। इसीलिए इसे यंत्रराज, यंत्र शिरोमणि, षोडशी यंत्र व देवद्वार भी कहा गया है। ऋषि दत्तात्रेय व दूर्वासा ने श्रीयंत्र को मोक्षदाता माना है । जैन शास्त्रों ने भी इस यंत्र की प्रशंसा की है.

जिस तरह शरीर व आत्मा एक दूसरे के पूरक हैं उसी तरह देवता व उनके यंत्र भी एक दूसरे के पूरक हैं । यंत्र को देवता का शरीर और मंत्र को आत्मा कहते हैं। यंत्र और मंत्र दोनों की साधना उपासना मिलकर शीघ्र फलदेती है । जिस तरह मंत्र की शक्ति उसकी ध्वनि में निहित होती है उसी तरह यंत्र की शक्ति उसकी रेखाओं व बिंदुओं में होती है।
मकान, दुकान आदि का निर्माण करते समय यदि उनकी नींव में प्राण प्रतिष्ठत श्री यंत्र को स्थापित करें तो वहां के निवासियों को श्री यंत्र की अदभुत व चमत्कारी शक्तियों की अनुभूति स्वतः होने लगती है। श्री यंत्र की पूजा से लाभ: शास्त्रों में कहा गया है कि श्रीयंत्र की अद्भुत शक्ति के कारण इसके दर्शन मात्र से ही लाभ मिलना शुरू हो जाता है। इस यंत्र को मंदिर या तिजोरी में रखकर प्रतिदिन पूजा करने व प्रतिदिन कमलगट्टे की माला पर श्री सूक्त के पाठ श्री लक्ष्मी मंत्र के जप के साथ करने से लक्ष्मी प्रसन्न रहती है और धनसंकट दूर होता है।
यह यंत्र मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाला है। इसकी कृपा से मनुष्य को अष्टसिद्धि व नौ निधियों की प्राप्ति हो सकती है। श्री यंत्र के पूजन से सभी रोगों का शमन होता है और शरीर की कांति निर्मल होती है

श्रीललिता सहस्त्रार्चन यानि भगवती श्री ललिता त्रिपुर सुन्दरी के प्रतीक श्रीयंत्र पर 1000 नामो से कुमकुम रोली द्वारा उपासना।

(श्रीललिता सहस्त्रार्चन के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञाचक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने का तात्पर्य मानसिक कल्पना करें कि देवी माँ आपके उक्त स्थान में कमलासन पर विराजमान है।)

श्रीयंत्र को अन्य पूजन की ही भांति पहले स्नान आचमन वस्त्र धूप दीप नैवैद्य आदि अर्पण करने के बाद सर्वप्रथम प्राणायाम करें (गुरु से मिले मंत्र का मानसिक उच्चारण करते हुए) इसके बाद आचमन करें इन मंत्रों से आचमनी मे 3 बार जल लेकर पहले 3 मंत्रो को बोलते हुए ग्रहण करें अंतिम हृषिकेश मांयर से हाथ धो लें।

ॐ केशवाय नम: ॐ नाराणाय नम: ॐ माधवाय नम: ॐ ह्रषीकेशाय नम: मान्यता है कि इस प्रकार आचमन करने से देवता प्रसन्न होते हैं।

प्राणायाम आचमन आदि के बाद भूत शुद्धि के लिये निम्न मंत्र को पढ़ते हुए स्वयं से साथ पूजा सामग्री को पवित्र करें।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।

भूत शुद्धि के बाद निम्न मंत्रो से आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मों देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद:
आसन पूजने विनियोगः। 

विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें। इसके बाद पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – 

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं। ॐ आधारशक्तये नमः । ॐ कूर्मासनाये नमः । ॐ पद्मासनायै नमः । ॐ सिद्धासनाय नमः । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नमः ।

तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें। पाठ के बाद निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :-

1 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) अंगुष्ठाभ्याम नमः ।
2 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
3 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) मध्यमाभ्यां वष्ट ।
4 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) अनामिकाभ्यां हुम् ।
5 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) कनिष्ठिकाभ्यां वौषट ।
6 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।

करन्यास के बाद निम्न मन्त्रों से षड़ांग न्यास करें :-

1 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) हृदयाय नमः ।
2 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) शिरसे स्वाहा ।
3 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) शिखायै वष्ट ।
4 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) कवचाये हुम् ।
5 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) नेत्रत्रयाय वौषट ।
6 ॐ (दीक्षा में प्राप्त हुआ मन्त्र) अस्तराय फट् ।

न्यास के उपरांत श्री पादुकां पूजयामि नमः बोलकर शंख के जल से अर्घ्य प्रदान करते रहें। अर्घ्य के उपरांत यंत्र को साफ कपड़े से पोंछ कर लाल आसान अथवा यथा योग्य या सामर्थ्य अनुसार आसान पर विराजमान करें। इसके उपरांत सर्वप्रथम श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से अपने गुरूजी का पूजन करें :-

1 ॐ श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
2 ॐ श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
3 ॐ श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः।

श्री चक्र के बिन्दु पीठ में भगवती शिवा महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान करके योनि मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए पुनः इस मन्त्र से तीन बार पूजन करें। 
ॐ श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री विद्या राज राजेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः।


इसके बाद माँ ललिता त्रिपुरसुंदरी के एक-एक करके एक हजार नामो का उच्चारण करते हुए हल्दी वाली रोली, या रोली चावल मिला कर सहस्त्रार्चन करें। सहस्त्रार्चन पूरा होने के बाद माता जी की कर्पूर आदि से आरती करें आरती के उपरांत श्री विद्या अथवा गुरुदेव से मिला मंत्र यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जपने का प्रयास करें। इसके बाद एक पाठ श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का अवश्य करें। अंत मे माता को साष्टांग प्रणाम करें प्रणाम करने के लिये आसान से उठने से पहले आसान के आगे जल गिराकर उसे माथे पर लगाना ना भूले, किसी भी पूजा पाठ आदि कर्म में आसान छोड़ने से पहले आसान के आगे पृथ्वी पर जल गिराकर उसे माथे एवं आंखों पर लगाना अत्यंत आवश्यक है ऐसा ना करने पर पुण्य का आधा भाग इंद्र ले जाता है।

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